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भरतमुनि के समकालीन जैनाचार्य अनुयोगद्वारसूत्रकार आर्यरक्षित ने पुराने आठ रतों में नवां प्रशान्त रस सम्मिलित करते हुए नौ रसों का उल्लेख किया है।' डा. कमलेश कुमार जैन ने इन नौ रसों के नाम इस प्रकार बताये है -1) वीर, (2) श्रृंगार, (3) अद्भुत, (4) रौद्र, (5) बीडनक, (6) वीभत्स, ( 7 ) हास्य, ( 8 ) करूप व(७) प्रशान्त। इसके साथ ही उन्होंने अनुयोगद्वारसूत्र ते कारिका भी उद्धत की है। इस प्रकार यहाँ एक नवीन बात ये दृष्टिगत होती है कि आचार्य आर्यरक्षित ने भरता दि आचार्यो दारा उल्लिखित भयानक रत के स्थान पर वीडनक्र रस का उल्लेख किया है। किन्तु इसकी सत्ता में सन्देह है क्योंकि इसे परवर्ती आवार्यो द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हुई है। इसी लिये डा. दी. राघवन आदि आधुनिक काव्यशास्त्री वीडनक
को स्वतंत्र रस की सत्ता नहीं देते हैं।
जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने श्रृंगार, वीर, करूप, हास्य, अद्भुत, भयानक, रौद्र, वीभत्स और शान्त इन नौ रतों को स्वीकार किया है। 4
1. गटव्य - द नम्बर आफ रसाब, पृ. 24
2. वीरो सिंगारो अब्भओ अ रौढ्दो अ होइ बोदव्वो। वेलपओ बीभच्छो, हासो कलपो पंसतो अ ।।
अनुयोगद्वारसत्र प्रथम भाग, पु, 828, “जैनाचार्यो का अलंकारशास्त्र में
योगदान" पृ. 105 से उद्धत। 3 दी नम्बर आफ रसाप, वी, राघवन, पृ. 143 + वाग्भटालंकार - 5/3