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रामचन्द्र गुणचन्द्र के अनुसार रसानुभव के 5 आधार होते हैं:
1. लौकिक स्त्री-पुरुष
2.
3
4.
नट
काव्य तथा नाटक का श्रोता
कवि एवं नाट्य का अनुसन्धाता, और
5. सामाजिक
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अनुकार्य, अनुकर्ता, श्रोता व अनुसन्धाता में रस की प्रतीति प्रत्यक्ष रूप में एवं सामाजिक को परोक्ष रूप में होती है। सामाजिक में स्थित र लोकोत्तर होता है और अन्यत्र स्थित लौकिक ।
रस मुख्य रूप से किसमें रहता है? इसके उत्तर में नाट्यदर्पण कार का कथन है कि चित्तवृत्तिरूप रस का आविर्भाव सामाजिक ही होता है और काव्यार्थपरिशीलनकर्ता सामाजिक चिन्तवृत्तिरूप रस का आस्वादन अपने आन्तरिक सुख की तरह करते हैं, न कि वाह्य वस्तु जन्य सुख की तरह । जैसे मोदकादि वाह्य वस्तु से सुखास्वाद होता है, उससे विलक्षण काव्यार्थ भावना जन्य रस का आस्वाद है।' इसलिये रस का आस्वादक सामाजिक
I. श्रितोत्कर्षो हिचेतोवृत्तिरूपः स्थायी भावो रसः, स चाचेतनस्य काव्यस्यात्माधेयो वा कथं स्यात् १ ततः काव्यार्थप्रतिपत्तैरनन्तरं प्रतिपतृणां रसाविर्भावः ।
प्रतिपत्तारश्चात्मस्थं सुखमिव रसमास्वादयन्ति । न पुन:र्बहिःस्थं र मोदकमिव प्रतियन्ति । अन्यो हि मोदकस्यास्वादोऽन्यश्च प्रत्यया
रसस्य ।
हिन्दी नाट्यदर्पण, पृ. 302