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लिखा है कि अभ्यास ही कर्म में कौशल लाता है। पत्थर पर गिराई गई जल की एक बूंद गहराई को प्राप्त नहीं होती, किन्तु वही बूंद बार-बार- गिराई जाय तो पत्थर पर भी गड्ढा कर देती है । । आ. हेमचन्द्र ने अभ्यास के प्रसंग मे "शिक्षा" का जैसा विशद विवेचन सोदाहरण प्रस्तुत किया है, वैसा पूर्ववर्ती किसी ग्रन्थ में देखने को नहीं मिलता। इसके लिये उनकी वृत्ति तथा टीका दोनों महत्वपूर्ण हैं। उनके अनुसार विद्यमान होते हुए भी किसी वस्तु का वर्णन न करना, अविद्यमान का काव्य में निबन्धन कर देना, नियम ( कवि समय आदि), छाया आदि का उपजीवन ( ग्रहण करना शिक्षा है। 2 इस प्रसंग में छाया का उपजीवन चार प्रकार से बतलाया गया है
(1) प्रतिबिम्बकल्पतया, ( 2 ) आलेख्यप्रख्यतया, ( 3 ) तुल्यदेहितुल्यतया तथा ( 4 ) परपुरप्रवेशप्रतिमतया । इनमे से ध्वन्यालोककार ने प्रथम तीन भेदों का संकेत किया है। 3 राजशेखर ने भी अपनी काव्य मीमांसा में इसकी संक्षिप्त चर्चा की है। आचार्य हेमचन्द्र ने आदिपद ते पदपाद आदि का दूसरे काव्यों से औचित्य के
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1. "अभ्यासो हि कर्मसु कौशलमावहति । न हि सकृन्निपतितमात्रे पौदबिन्दुरपि ग्रावणि निम्नतामादधाति इति ।
वही, पृ.14
सतोऽप्यानबन्धोऽसतोऽपि निबन्धो नियम छायाद्युपजीवनादयश्च शिक्षा : ।
काव्यानु, 1/10
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3. ध्वन्यालोक 4/12-13