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मनोरंजन व शोकपीड़ित तथा परिश्रान्त जनों को विश्रान्ति प्रदान करना? आगे उन्होंने धर्म, यश, आयु, हित, बुद्धि-वर्धन तथा लोकोपकारी उपदेश को नाट्य (काव्य) का प्रयोजन बताया है।
__ भरतमुनि के पश्चात् ज्यों ज्यों साहित्यिक विवेचना का
विकास होने लगा त्यों त्यों काव्य के प्रयोजन का भी विशद विवेचन
किया गया। अलंकारिक आचार्य भामह के अनुसार सत्काव्य का अनुशीलन (I) धर्म, अर्थ, काम तथा मोs नामक पुरूषार्थचतुष्टय एवं कलाओं में निपुपता, ( 2 ) यश प्राप्ति तथा (3) प्रीति का कारण है।' महाकवि
द:खाानां श्रमाानां शोकानां तपस्विनास। विश्रामजननं लोके नाटयमेतद भविष्यति।।
- नास्मशास्त्र 1/113 2. धम्यं यश त्यमायुष्यं जिंबुदिविवर्धनम्। लोकोपदेशजननं नाट्यमेतद् विष्यति ।।
नाटयशास्त्र, I/I15 3. धर्मार्थकाममोक्षेषु वैक्षण्यं कलातु च। प्रीति करोति कीर्ति च साधुकाव्यनिबन्धनम्।।
काव्यालंकार, 1/2