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आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने भी भर्तृहरि की 'संतो विप्रयोगश्च ...? इत्यादि उक्त कारिकाओं को उद्धृत कर के संतर्गादि के उदाहरप दिए
हेमचन्द्राचार्य ने शब्दशक्तिमलकव्यंग्य के सर्वप्रथम तीन भेद किए है - मुख्य, गौप व लक्षक। पुनः मुख्यशब्दशक्तिमलकव्यंग्य के वस्तुध्वनि व अलंकारध्दनि - ये दो भेद कर दोनों के पृथक्-पृथक् पदगत व वाक्यगत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। शेष दो गोपशाब्दशाक्तिमलकव्यंग्य और लक्षकशब्दशाक्तिमलकव्यंग्य भेदों के प्रभेद वस्तुध्वनि के पदगत व वाक्यगत उदाहरप प्रस्तुत किए हैं।
आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने शब्दशक्तिमलकव्यंग्य के सर्वप्रथम दो भेद किए हैं -- वस्तुध्वनि व अलंकारध्वनि। पुनः दोनों में अर्थान्तरसंक्रमित वाच्य व अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य - ये दो - दो भेद किए हैं। ये नारों पद व वाक्यगत भी होते हैं।
अर्थशक्तिमूलकव्यंग्य - आ. हेमचन्द्र ने वक्ता आदि के वैशिष्ट्य से अर्थ की भी व्यंजक्ता स्वीकार की तथा वक्ता, प्रतिपाध, काकु,वाक्य, वाच्य, अन्यासक्ति, प्रस्ताव, देश, काल, व चेष्टा के वैशिष्टय से ध्वनित होने वाले अर्थ की मुख्य, अमुख्य व व्यंग्य रूपी अर्य की व्यंजकता
।. द्रष्टव्य, अलंकारमहोदधि, 3/33-34 सवृत्ति 2. वक्त्रा दिवैशिष्ट्यादर्थस्यापि व्यञ्जकत्वम।
काव्यानुशासन, 1/29