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आदि अर्थशक्तिमलकव्यंग्य हैं।' इस प्रकार उन्होंने रतादि को अर्थशक्तिमलव्यंग्य ही माना है। 'रतादिश्च इप्त सूत्र में वकार का ग्रहण पद, वाक्य व प्रबन्ध में समावेश के लिए किया गया है। रसादि सदा व्यंग्य ही होते हैं, वे कभी भी वाच्य नहीं होते हैं, इसलिये रता दि की प्रधानता बताने हेतु पृथक् सूत्र कहा गया है। क्योंकि वस्तु व अलंकार तो वाच्य भी होते हैं। 2
___ इस प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने संक्षेप मे शब्दशक्तिमलकव्यंग्य के 8 भेद और अर्थशक्तिमूलकव्यंग्य के 15 भेदों को मिलाकर ध्वनि के कुल 23 भेद कहे हैं। आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने रसादि असंलक्ष्यकमव्यंग्य का अगणनीय एक ही भेद माना है।' पुनः यह पद, वाक्य, प्रबन्ध, पदान्त, रचना व वर्ग के भेद से छ: प्रकार होता है।
1. रसभावतदाभासभावशान्ति भावोदयमावस्थितिभावसन्धिमावशबलत्वानि अर्थशक्तिमला नि व्यंग्यानि।
काव्यानुशासन, 1/25 2. काव्यानु. 1/25 3 एकैव हि रसादीनामगण्यत्वाद भिधा भवेत्।
अलंकारमहोदधि, 3/16 . + वही, 3/62-63