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प्रवृत्त होना चाहिए।'
यहाँ भामहागर्य ने काव्यहेतु के तीनों साधनों - प्रतिभा, व्युत्पत्ति तथा अभ्यास का निरूपप किया है। उन्होंने व्युत्पत्ति तथा अभ्यास की अपेक्षा प्रतिभा पर अधिक बल दिया है। तात्पर्य यह है कि वे प्रतिभा को अनिवार्य व प्रमुख हेतु मानते हैं।
आ. दण्डी स्वाभाविक प्रतिभा, अत्यन्त निर्मल विद्याध्ययन एवं उसकी बहु - योजना को ही काव्य हेतु मानते हैं। उन्होने भामह की
गुरूपदेशादध्येतुं शास्त्रं जडधियोऽ प्यलम्। काव्यं तु जायते जातु कथंचित् प्रतिभावताम्।। शब्दाछन्दोऽभिधानार्था इतिहाताश्रयाः कथाः। लोको युक्तिः कलापचेति मन्तव्या काव्यगमी। शब्दा भिधेये विज्ञाय कृत्वा तद्विपासनाम। विलोक्यान्य निबन्धाश्च कार्य : काव्यकियादरः।।
- काव्यालंकार, 1/15, 9-10 2. नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्। अमन्दाचा भियोगोऽत्याः कारपं काव्यसम्पदः।।
- काव्यादर्श, 1/103