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इसी प्रकार आचार्य नरेन्द्रप्रभसरि के अनुसार अब तक शब्दशक्तिमूलकव्यंग्य के 8 भेद, अर्थशक्तिमूलकव्यंग्य के 24 भेद और उभयशक्ति मलकव्यंग्य का एक भेद मिलाकर संलक्ष्यक्रमव्यंग्य के कुल 33 भेद हुए तथा असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य के छः भेद मिलाने पर 39 भेद । इन 39 भेदों की 39 के साथ संसृष्टि होकर 1521 भेद होते हैं। पुनः तीन प्रकार का संकर होकर 4563 भेद होते हैं। इस प्रकार 1521 संसृष्टि के और 4563 संकर के मिलाने पर 6084 मिश्रित भेद हुए । इनके 39 शब्द भेद मिला देने पर ध्वनि के कुल 6123 भेद होते हैं। '
1. संसृष्टे रेकरूपायास्त्रिरूपात सङ्करादपि ।
सिद्ध भिन्मीलनाच्च स्युस्ता विश्वार्क रसोर्मिताः ।।
- वही, 3/64
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