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का तोदाहरण वर्षन किया है।' इसी प्रकार वक्ता आदि दो (या अधिक) के योग से भी व्यंजक्ता स्वीकार की है। नरेन्द्रप्रभारि ने हेमचन्द्र के समान ही वक्ता व बोद्धा आदि के वैशिष्ट्य ते अर्थ की व्यंजकता को स्वीकार करते हुए सोदाहरप प्रतिपादन किया है तथा वक्तादि दो (या अधिक) के योग से भी अर्थ की व्यंज कता स्वीकार की है।
हेमचन्द्र ने अर्थशक्तिमलकव्यंग्य के सर्वप्रथम दो भेद किए हैं -- वस्तु और अलंकार। पुनः वस्तु के वस्तु से वस्तु और वस्तु से अलंकार तथा अलंकार के अलंकार से वस्तु और अलंकार से अलंकार नामक दो - दो भेद किए हैं। उनके अनुसार ये चारों भेद पद, वाक्य व प्रबन्धगत भी होते हैं। आ. हेमचन्द्र ने अर्थशक्तिमूलकव्यंग्य के स्वत: संभवी, कविप्रौदो
क्तिमात्र निष्पन्न और कविनिबद्धवक्तपौदोक्तिमात्र निष्पन्न - इन तीनों
भेदों का कथन उचित नहीं माना है, क्योंकि प्रौढोक्तिनिष्पन्नमात्र से ही
१. वही, 1/21, वृत्ति , पृ. 58-63 2. वही, पृ. 62 . 3. अलंकारमहोदधि, 3/7-8 वृत्ति। ५. वही, पृ. 52 5. काव्यानुशासन, 1/24 सवृत्ति