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संज्ञा - यथा - "जब शिवजी वार्तालाप के प्रसंग में (पार्वती जी से) इधर-उधर की बातों का उत्तर मांगते तो पार्वती जी दृष्टि घुमाकर तथा सिर हिला कर उत्तर देती थीं।'
इंगित - यथा - "हम लोगों का मिलन कब होगा इस प्रकार जनाकी
के कारप कहने में असमर्थ नायक को जानकर नायिका ने क्रीडाकमल को सिकोड़ दिया।
आकार - यथा - अपने उष्ण निःप्रवास पूर्वक जो निवेदन दिया है, उसने मेरा मन संशय को ही प्राप्त हो रहा है, क्यों कि तुम्हारे योग्य ही कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता है, पुनः जिते तुम चाहती हो वह तुम्हे अलभ्य कैसे होगा।
इस प्रकार संतर्गादि से नियंत्रित अभिधा में जो अर्थान्तर प्रतीति होती है, वह व्यंजना - व्यापार से ही होती है। अमुख्य शब्द में भी मुख्यार्य - बाध आदि के नियंत्रित हो जाने पर प्रयोजन का बोध व्यञ्जना व्यापार से ही होता है।
1. वही, पृ. 66 2. वही, पृ. 66 3 वही, पृ. 66