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शब्दान्तरसन्निधि
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" किं साक्षादुपदेशयष्टि रथवा देवस्य
श्रृंगारिणः " यहां शृंगारी इस शब्दान्तर के संनिधान ते देव का अर्थ
कामदेव है।
सामर्थ्य
यथा - * क्वपति मधुना मत्तश्चेतोहरः प्रिय कोकिल : " यहाँ सामर्थ्य ते मधु का अर्थ वसन्त प्रतीत हो रहा है। 2
"तन्ध्या यत्सुरतान्तकान्तनयनं वक्त्रं रति व्यत्यये ।
औचित्य - यथा तत्त्वा पातु चिराय.... यहाँ औचित्य के कारण पालन प्रसन्नतारूपी अनुकूलता अर्थ में नियंत्रित है। 3
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देशा
यथा
से राजा का बोध हो रहा है। 4
काल - यथा
हो रहा है। 5
1.
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2.
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3.
5.
6.
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यथा
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व्यक्ति यथा - यहाँ व्यक्ति विशेष ते मित्र शब्द सुहत् अर्थ में नियंत्रित है । '
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" महेश्वरस्यास्य कापि कान्ति" यहाँ राजधानी रूप देश
"चित्रभानुर्विभात्यह्नि" यहां काल विशेष से सूर्य का ज्ञान
" मित्रं हन्तितरां तमः परिकरं धन्ये दृशौ मादृशाम् *
काव्यानुशासन, पृ. 64
काव्यानुशासन, पृ. 64 काव्यानुशासन, पू. 63 काव्यानुशासन, पृ. 63 काव्यानुशासन, पृ. 63
वही, पु. 65