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मुख्य शब्द वन्तु व अलंकार का व्यंजक होता है, अत: शब्दशक्तिमलक व्यंग्य माना जाता है। इसी प्रकार अमुख्य अर्थात गौप और लाक्षणिक का मुख्यार्थ बाधा आदि के द्वारा लक्षणारूप व्यापार के नियंत्रित हो जाने पर अमुख्य शब्द वस्तु का व्यंजक होता है, अत : वहां भी शब्दशक्तिमालक व्यंग्य होता है। ये दोनों पद और वाक्य के भेद ते दो-दो प्रकार के होते हैं।' संसर्गादि का ज्ञान कराने हेतु हेमचन्द्र ने भर्तृहरि के वाक्यपदीय ते दो कारिकाएं उद्धत की है --
संसर्गो विप्रयोगश्च सायं विरोधिता। अर्थ: प्रकरपं लिंग शब्दत्यान्यस्य सन्निधिः।। सामर्थ्यमौ चिती देशः कालो व्यक्ति : स्वरादयः। शब्दार्थत्यानवच्छेदे विशेषमतिहेतवः।।2
संसर्ग : यथा - "वनमिदमभय मिदानीं यत्रास्ते लक्ष्मपान्वितो रामः" यहाँ लक्ष्मण के योग से दशरथि राम व लक्ष्मण का ज्ञान हो रहा है।
विपयोग : यथा - "बिना सीतां रामः प्रविशति महामोहतरणिम्" यहाँ सीता के वियोग से दशरथि राम का ज्ञान हो रहा है।
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1. काव्यानुशासन 1/23 2. वही, 1/23 वृत्ति। वाक्यपदीय 2/315-16 3 काव्यानुशासन, पृ. 64