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________________ 90 आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने भी भर्तृहरि की 'संतो विप्रयोगश्च ...? इत्यादि उक्त कारिकाओं को उद्धृत कर के संतर्गादि के उदाहरप दिए हेमचन्द्राचार्य ने शब्दशक्तिमलकव्यंग्य के सर्वप्रथम तीन भेद किए है - मुख्य, गौप व लक्षक। पुनः मुख्यशब्दशक्तिमलकव्यंग्य के वस्तुध्वनि व अलंकारध्दनि - ये दो भेद कर दोनों के पृथक्-पृथक् पदगत व वाक्यगत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। शेष दो गोपशाब्दशाक्तिमलकव्यंग्य और लक्षकशब्दशाक्तिमलकव्यंग्य भेदों के प्रभेद वस्तुध्वनि के पदगत व वाक्यगत उदाहरप प्रस्तुत किए हैं। आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने शब्दशक्तिमलकव्यंग्य के सर्वप्रथम दो भेद किए हैं -- वस्तुध्वनि व अलंकारध्वनि। पुनः दोनों में अर्थान्तरसंक्रमित वाच्य व अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य - ये दो - दो भेद किए हैं। ये नारों पद व वाक्यगत भी होते हैं। अर्थशक्तिमूलकव्यंग्य - आ. हेमचन्द्र ने वक्ता आदि के वैशिष्ट्य से अर्थ की भी व्यंजक्ता स्वीकार की तथा वक्ता, प्रतिपाध, काकु,वाक्य, वाच्य, अन्यासक्ति, प्रस्ताव, देश, काल, व चेष्टा के वैशिष्टय से ध्वनित होने वाले अर्थ की मुख्य, अमुख्य व व्यंग्य रूपी अर्य की व्यंजकता ।. द्रष्टव्य, अलंकारमहोदधि, 3/33-34 सवृत्ति 2. वक्त्रा दिवैशिष्ट्यादर्थस्यापि व्यञ्जकत्वम। काव्यानुशासन, 1/29
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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