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हैं। यथा - शब्द - वैचित्र्य से युक्त काव्य -
"अघौघं नो नृसिंहत्य घनाघनघनध्वनिः। हताद दयुरुघराघोषः सुदीर्घो घोरघर्घरः।।'
यहाँ पर अनुपास शब्दालंकार की प्रधानता होने से, शब्द वैचित्र्य मात्र से युक्त होने के कारप यह अधम काव्य का उदाहरप है। अर्थवचित्र्य युक्त काव्य, यथा -
ये दृष्टिमात्रपतिता अपि कस्य नात्र धोभाय पक्ष् मलदृशामलकाः खलाश्च । नीचाः सदैव सविलासमली कलग्ना ये कालता कुटिलतामिव न त्यन्ति।। 2
यहाँ उपमा प्रलेषादि अर्थालंकार की प्रधानता है।
आ. हेमचन्द्र व्यंग्य रहित काव्य के संदर्भ में लिखते हैं कि यद्यपि काव्य के अन्त में सर्वत्र विभावादि रूप से रस में ही पर्यवसान होता है तथापि स्फुट रस का अभाव होने से अव्यंग्य अवर काव्य को कहा गया है।
इस प्रकार आ. हेमचन्द्र ने प्वनि को आधार मानकर काव्य का त्रिधा विभाजन काव्यानुशासन के द्वितीय अध्याय में ही प्रस्तुत कर दिया है। काव्यानुशासन के अष्टम अध्याय में जो काव्यभेदों का निरूपप
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वही, पृ. 157 वही, पृ. 157-158 यापि सर्वत्र काव्येऽन्ततो विभावादिरूपतया रसपर्यवसानम, तथापि स्फुटस्य रसत्यानुपलम्भा दव्यंगात्कात्यमुक्तम्।
काव्यानुशासन, पृ. 158