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होती है। यथा
कहीं विधि व निषेध के रहने पर भी विध्यन्तर की प्रतीति
होती है
नियदइयसपुक्त्ति पहिय अन्नेष वच्चतु पहेप
गववधूआ दुल्लंघवाउरा इह हयग्गामे । । '
होती है। यथा
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कहीं विधि व निषेध ते निषेधान्तर की प्रतीति
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उच्चित पडियकुसुमं मा धुप तेहालियं हलियतु । एस अवतापबिरसो ससेण सुभ वलयसद्वदो । । 112
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कहीं वाच्यार्थ विधि रूप होने पर भी अनुभयरूप प्रतीत
यथा
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सषियं वच्च किसोयरि पर पयन्तेष ठवसु महिवट्ठे ।
भज्जिहिति वत्थयत्थपि विहिषा दुक्खेण निम्मविया । 3
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1. वही, पृ. 55
2. वही, पृ. 55
3. काव्यानुशासन, पृ. 55