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मापिकुल्या - जितमें पहले वस्तु लक्षित नहीं होती, किन्तु बाद में प्रकाशित होने लगती है, वह मत्स्वसित आदि की तरह मपिकुल्या है।'
परिकथा - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में से किसी एक को लक्ष्य करके विभिन्न प्रकार से उनन्तवृत्तान्त-दर्पन-प्रधान टिकादि के
समान परिकथा होती है।
यण्डकथा - अन्य ग्रन्थों में प्रसिद्ध इतिवृत्त को मध्य ते अथवा अन्त ते ग्रहण कर जिसमें वर्पन किया जाता है, वह इन्दुमती आदि की तरह खण्डकथा कहलाती है।
सुकलकथा - चतुर्पुरुषार्यों को लेकर जहाँ इतिवृत्त का वर्पन हो, वह समरादित्य
की तरह सकलकथा कहलाती है।
1. यत्या पूर्व वस्तु न लक्ष्यते पश्चात्तु प्रकाश्येत सा मत्स्यहसिता - दिवन्मपिकुल्या।
काव्यानु. 8/8 वृत्ति 2. एकं धर्मादिपुरुषार्थमुद्दिश्य प्रकारचियेपानन्तवृतान्तवर्पनपधाना शतका दिवत परिकथा।
वही, 8/8 वृत्तिा 3 मध्यादुपान्ततो वा गन्थान्तरप्रसिद्ध मितिवृत्तं यत्या वय॑ते वा इन्दुमत्यादिवत यण्डकथा।
वही, 8/8 वृत्ति । + समस्तफ्लान्ततिवृत्तवर्पना समरादित्यादिवत् सकलकया।
वही, 8/8 वृत्तिा