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इसके अतिरिक्त उसमें नायक अपना चरित स्वयं नहीं कहता, अपितु किसी अन्य व्यक्ति ते कहलाता है, क्योंकि कुलीन, व्यक्ति अपने गुण स्वयं कैसे कहेगा । । दण्डी कथा तथा आख्यायिका में कोई मौलिक भेद "
न मानकर एक ही जाति के दो नाम मानते हैं? उनके अनुसार कथा की रचना सभी भाषाओं तथा संस्कृत में भी होती है। अद्भुत अर्थों वाली बृहत्कथा भूतभाषा में है। 3 आनन्दवर्धन ने भी काव्य के भेदों में पटकथा, खंडकथा तथा सकलकथा का उल्लेख किया है। 4
जैनाचार्य हेमचन्द्र ने कथा का स्वरूप निरूपण करते हुए लिखा है कि जिसमें धीरप्रशान्त नायक हो तथा जो सर्वभाषाओं में निबदु हो, ऐसी गद्य अथवा पथमयी रचना कथा कहलाती है। इनके अनुसार संस्कृत प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची तथा अपभ्रंश में भी कथा का निबन्धन,
किया जा सकता है।' आ. हेमचन्द्र ने कथा के दस भेद किए हैं - आख्यान, निदर्शन, प्रवह्निका, मतल्लिका, मणिकुल्या, परिकथा, खण्डकथा, सकलकथा, उपकथा तथा बृहत्कथा'। प्रत्येक का स्वरूप निम्न प्रकार ह
1. काव्यालंकार
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1/28-29
काव्यादर्श 1/28
वही, 1/38
2.
3.
4. ध्वन्यालोक, 3/7 वृत्ति
5.
•
धीरशान्तनायका गधेन पद्येन वा सर्वभाषा कथा |
काव्यानु - 8/8
6. काव्यानु, 8 / 8 वृत्ति
7. वही, 8/8 वृत्ति
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