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आख्यान -
प्रबन्ध के मध्य में दूसरे को समझाने के लिए नलादि उपाख्यान के समान उपाख्यान का अभिनय करता हुआ, पढ़ता, गाता हुआ जो एक ग्रन्थिक (ज्योतिषी ) कहता है, वह गोविन्द की तरह आख्यान कहलाता है। '
निदर्शन पशु पक्षियों अथवा तदृभिन्न प्राणियों की चेष्टाओं के द्वारा जहाँ कार्य अथवा अकार्य का निश्चय किया जाता है, वहाँ पंचतन्त्र आदि की तरह तथा धूर्त, विट, कुट्टनीमत, म्यूर, मार्जारिका आदि के समान निदर्शन होता है।
प्रवह्निका
वह अर्धप्राकृत में चेटकादि के समान प्रवह्निका है। 3
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2.
प्रधान नायक को लक्ष्य करके जहाँ दो व्यक्तियो में विवाद हो,
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मतल्लिका प्रेत (भूत) भाषा अथवा महाराष्ट्री भाषा में रचित लघुकथा, गोरोचना अथवा अनंगवती आदि की भांति मतल्लिका होती है, जिसमें पुरोहित, अमात्य अथवा तापस आदि का प्रारम्भ किये गये कार्य को समाप्त न कर पाने के कारण उपहास होता है, वह भी मतल्लिका कहलाती है। 4
1. प्रबन्धमध्ये परप्रबोधनार्थं नलापाख्यानमिवोपाख्यानमभिनयन् पठन् गायन यदैको ग्रन्थिकः कथयति तद् गोविन्दवदाख्यानम् ।
वही, 8 / 8 वृत्ति ।
तिरश्चामतिरश्चां वा चेष्टाभिर्यत्र कार्यमकार्य वा निश्चीयते तत्पंचतन्त्रादिवत्, धूर्त विटकुट्टनीमतम्पूरमार्जारिकादिवच्च निदर्शनम् ।
वही, 8 / 8 वृत्ति !
3. प्रधानमधिकृत्य यत्रद्वयोर्विवादः सोऽर्धप्राकृत रचिता पेटका दिवत् प्रवहिका । वही 8/8 वृत्ति।
4. प्रेत महाराष्ट्रभाषया क्षुद्रकथा गोरोचना अनंगवत्था दिवन्मतल्लिका । यत्यां पुरोहितामात्यतापसादीनां प्रारब्धानिर्वाहि उपहास : तापि मतल्लिका । वही, 8 / 8 वृत्ति |