________________
काव्यानशासन
"काव्यानुशात्न" की रचना सूत्र शैली में की गई है। इस पर आचार्य वाग्भट द्वितीय ने अलंकारतिलक नामक स्वोपज्ञवृत्ति की भी रचना की है। इस पर हेमचन्द्रकृत् काव्यानुशासन की छाया प्रतीत होती है। साथ ही काव्यमीमांसा तथा काव्यप्रकाश का भी इसमें उपयोग किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ पाँच अध्यायो में विभक्त है
-
प्रथम अध्याय में, काव्य-प्रयोजन, काव्य-हेतु, काव्य-शिक्षा, काव्य-स्वरूप, महाकाव्य, मुक्तक, रूपक, आख्यायिका तथा कथा आदि का स्वरूप निरूपण किया गया है।
40
द्वितीय अध्याय में सर्वप्रथम 16 शब्द दोषों का विवेचन है जो पद तथा वाक्य दोनों में होते हैं। पुनः विसंधि आदि वाक्य दोषों तथा कष्टअपुष्ट आदि अर्थ - दोषों का निरूपणं किया गया है। अन्त में, कान्ति तौकुमार्यादि दप्त गुणों का विवेचन कर तीन गुणों के सम्बन्ध में अपना स्पष्ट अभिप्राय तथा तीन रोतियों का उल्लेख है।
तृतीय अध्याय में, जाति, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि 63 अर्थालंकारों का सभेद निरूपण है। इसमें अन्य अपर, आशिष आदि विरल अलंकारों का समावेश किया गया है।