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समय उपर्युक्त विद्वानों के पश्चात विक्रम की 14वीं शताब्दी मानना युक्ति संगत प्रतीत होता है।
"काव्यानुशासन तथा उत्तकी टीका से ज्ञात होता है कि वाग्मट द्वितीय भेदपाट ( मेवाड़ ) निवासी नैमिकुमार के पुत्र तथा मवकलप तथा म्हादेवी के पौत्र थे।' इनके ज्येष्ठ माता का नाम श्री राहड था, जिनके प्रति वाग्भट को अगाध श्रद्धा थी। इनके पिता नेभिकुमार ने अपने द्वारा अर्जित किये गये धन से राहडपुर में उत्तुंग शिखर वाला भगवान नेमिनाथ एवं नलोटकपुर में 22 देवकुलिकाओं से युक्त आदिनाथ का मंदिर बनवाया था।'
आचार्य वाग्भट द्वितीय ने अनेक नवीन तथा सुन्दर नाटकों एवं महाकाव्यों के अतिरिक्त छन्द तथा अलंका रविषयक गन्धों का निर्मापं किया है। काव्यानुशासन के अतिरिक्त उनकी दो अन्य रचनाएँ भी उपलब्ध है1. ऋषभदेवरित महाकाव्य तथा, 2. छन्दोनुशासन। इसका उल्लेख काव्यानुशासन में मिलता है।
1. काव्यानुशासन - वाग्भट द्वितीय, अलंकारतिलक, वृत्ति, पृ.१ 2. वही, पृ. । 3. वही, पृ. । + क - श्रीमन्नेमिकुमारस्य नंदनो विनिर्मितानेकनव्यभव्यनाट कच्छन्दो
- लंकारमहाकाव्यप्रमुखमहाप्रबन्धबन्धुरो पारतरशास्त्रसागरसमुत्तरपतीर्थायमानशेषमुषीसमन्यस्तसमस्तानवध विद्या विनोदकन्दलितसकलकलाकलापसंपदुटो महाकविः श्रीवाग्भटो भीष्टदेवतानमस्कारपूर्वमपक्रमो।
काव्या. पृ. 1-2 - नव्यानेकमहाप्रबंधरचनाचातुर्यविस्फर्जित्स्फारोदारयशःप्रचारस्तत
व्याकीपवित्रवत्रयः श्रीमन्नेमिकुमारसनखिलपज्ञालच्डामपिः काव्यानामनुशासनं वरमिदं चकेकविर्वाग्भट :।।
वही, पृ. 68