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चतुर्थ अध्याय में, सर्वप्रथम वामन सम्मत दस गुपों का विवेचन कर भामह तथा आनन्दवर्धन सम्मत तीन गुपो का विवेचन किया गया है। पुनः शोभा, अभिधा, हेतु, प्रतिषेध, निरूक्ति, मुक्ति, कार्य व सिद्धि नामक आठ काव्य-चिन्हों का विवेचन किया है।
___पंचम अध्याय में वक्रोक्ति, अनुपात, यमक, श्लेष, चित्र तथा पुनरूक्तवदाभास नामक छः शब्दालंकारों का सोदाहरण निरूपप किया गया है।
षष्ठ अध्याय में, उपमा, उत्प्रेक्षा रूपक आदि 50 अर्थालंकारों का
विवेचन किया गया है।
सप्तम अध्याय में, पांचाली, लाटी, गौडी तथा वेदी नामक चार रीतियों का निरूपप किया गया है।
अष्टम अध्याय में, भाव, विभाव, अनुभावादि का मात्र नामोल्लेख