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आशीर्वाद, नमस्कार अथवा कथावस्तु के निर्देश ते होता है। इसमें सभी सर्गों के अन्त में छन्दों की भिन्नता तथा लोकानुरंजन आदि प्रमुख हैं। इस लक्षण की एक और अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि जहाँ भामह ने महाकाव्य मे वर्ण्य कुछ ही विषयों का उल्लेख किया है, वहाँ दण्डी ने निम्न अठारह विषयों का उल्लेख किया है - नगर, समुद्र, पर्वत, अतु, चन्द्रोदय, सूर्योदय, उद्यान, जलकीडा, मधुपान, प्रेम, विप्रलम्भ, विवाह, कुमारोत्पति, मंत्रपा, इत-प्रेषप, प्रयाप, युद्ध तथा नायकाभ्युदय। इनमें से अन्तिम पाँच का उल्लेख भामह ने इसके पूर्व किया है।
जैनाचार्य हेमचन्द्र ने महाकाव्य का स्वरूप निरूपप करते हुए लिया है कि - संस्कृत, प्राकृत अपभंश तथा गाम्यभाषा में निबद्ध, सर्ग के अन्त में भिन्न छन्दों से युक्त सर्ग, आश्वास, सन्धि और अवस्कन्धकबन्ध में विभक्त, उत्तम सन्धियों से युक्त, तथा शब्दार्य - वैचित्र्य सम्पन्न पद्यमयी रचना का नाम महाकाव्य है।'
इसके अतिरिक्त आचार्य हेमचन्द्र की मान्यता है कि संस्कृत भाषा में निबदु महाकाव्य में सर्ग के स्थान पर यदि आश्वासक का भी प्रयोग किया जाये तो कोई हानि नहीं है तथा सम्पूर्ण महाकाव्य में प्रारम्भ से लेकर
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1. पचं प्रायः संस्कृतप्राकृतापभंशगाम्यभाषानिबद्ध भिन्नान्त्यवृत्तसर्गापवाससंध्यवस्कन्धकबन्धं सत्सन्धि शब्दार्थवैचित्र्योपेतं महाकाव्यम्। काव्यान. 8/6