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रूपक के अभिनय तथा गेय ये दो भेद किए है। इनके अनुसार अभिनेय की संख्या दत है, जो हेमचन्द्र सम्मत पाठ्य के 12 मेदों में से ना टिका तथा स्टक को छोड़कर शेष दस हैं। गेय हेमचन्द्रसम्मत ही है।'
भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में नाटकादि दृश्य - काव्यों का बृहद रूप में उल्लेख किया है, अतः प्रस्तुत में केवल अव्य-काव्य के भेद - महाकाव्य आख्यायिका, कथा, चम्पू तथा अनिबद्ध - 5 भेदों का ही निरूपप किया जा रहा है -
महाकाव्य - जीवन की समग घटनाओं का जहाँ एक साथ विस्तृत विवेचन किया जाता है, ऐसी पद्यमयी रचना का नाम महाकाव्य है। आचार्य मामह ने सर्वप्रथम महाकाव्य का स्वरूप निरूपप करते हुए लिखा है कि - जो सर्गबन्ध हो, जिसमें महापुरुषों का चरित निबद्ध हो, बड़ा हो, ऐसा ग्राम्य - शब्दों से रहित, अर्थसौष्ठव सम्पन्न, अलंकार युक्त, सज्जनाश्रित, मंत्रपा, इतसम्प्रेषप, प्रयाप, युद्धनायक के अभ्युदय तथा पंचसन्धियों से समन्वित अनतिव्याख्येय (अक्लिष्ट), वैभव - सम्पन्न, चतुर्वर्ग का निरूपप करने पर भी अधिकता अर्थोपदेश की हो तथा जो लोकाचार तथा समस्त रसों से युक्त हो, वह महाकाव्य कहलाता है। दण्डीकृत महाकाव्य के स्वरूप में कतिपय अन्य बातों का भी समावेश है। यथा - इसका प्रारंभ
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1. काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 15-19 2. काव्यालंकार, 1/19-21 3 काव्यादर्श 1/14-19