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प्रथम ने भाषा को ध्यान में रखकर कुछ
जैनाचार्य वाग्भट उदार दृष्टि अपनाई तथा उन्होंने काव्य रचना हेतु पूर्वाचार्यों द्वारा स्वीकृत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के अतिरिक्त भूतभाषा पैशाची, को भी समान रूप से स्थान दिया है।' इसका कुछ कुछ संकेत दण्डी के इस कथन में भी मिलता है कि विचित्र अर्थों वाली बृहत्कथा भूतभाषा में है। 2
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वाग्भट प्रथम ने छन्द के आधार पर तीन भेद किए हैं। मिश्र । 3
1. वाग्भटालंकार, 2/1
2.
काव्यादर्श, 1/38
3. वाग्भटालंकार, 2/4
4.
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पाठ्य
आचार्य हेमचन्द्र ने इन्द्रियों की ग्राहकता को ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम दो भेद किए हैं - प्रेक्ष्य तथा श्रव्य । प्रेक्ष्य के दो भेद है तथा गया पुनः पाठ्य के 12 भेद हैं नाटक, प्रकरण, नाटिका, समवकार, ईहामृग, डिम, व्यायोग, उत्सृष्टिकांक, प्रहसन, भाण, वीथी तथा सट्टक । गय के 13 भेद हैं डोम्बिका, भाष, प्रस्थान, शिंगक, माणिका, प्रेरण, रामक्रीड, हल्लीसक, रासक, गोष्ठी, श्रीगदित, राग और काव्य आदि। 4
काव्यानुशासन, 8/1-4
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गद्य, पद्य तथा
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