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आदि पद से शम्पा, छलित तथा द्विपदा आदि का ग्रहण किया गया है। । द्विपदी तथा शम्पा का उल्लेख इससे पूर्व भामह ने भी किया है। 2 आचार्य हेमचन्द्र ने श्रव्य के पाँच भेद किये हैं महाकाव्य, आख्यायिका, कथा, चम्पू
और अनिबदु 31 नाट्यदर्पणकार ने अपने ग्रन्थ में काव्य के भेदों का मात्र कथा आदि का मार्ग अलंकारों से कोमल हो जाने के कारण सुखपूर्वक संचरण करने योग्य है" इतना ही उल्लेख किया है तथा रूपक के 12 भेद बताये हैंनाटक, प्रकरण, नाटिका, प्रकरणी, व्यायोग, समवकार, भाष, प्रहसन, डिम, उत्सृष्टिकांक, ईहामृग तथा वीथी। 5
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आचार्य वाग्भट द्वितीय ने गद्य, पद्य तथा मिश्र तीन भेदों का ही उल्लेख किया है। ' पुनः वाग्भट द्वितीय ने पद्म के महाकाव्य, मुक्तक, संदानितक, विशेषक, कलापक तथा कुलक ये छ: भेद, गद्य का आख्यायिका मात्र एक भेद तथा मिश्र के रूपक, कथा, व चम्पू ये तीन भेद किए हैं। पुनः
1. भादिग्रहणात् शम्पाच्छ लित द्विपधादि परिग्रहः ।
वही, 8/4 वृत्ति |
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काव्यालंकार 1/24
श्रव्यं महाकाव्यमाख्यायिका कथा चम्पूरनिबद्धं च । काव्यानुशासन, 8/5
हि. नाट्यदर्पण, श्लोक 3, प्रथम विवेक
हि. नाट्यदर्पण, श्लोक 1/3
काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 15