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रूट ने इनमें तीन प्रकार और जोड़ दिये -
+ मागध काव्य
पैशाचकाव्य
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शौरतेन काव्य
इसी प्रकार अलंकार तथा रीति सम्पदाय आचार्यों ने काव्य के अन्य भी भेद प्रभेद किये, जिनमें महाकाव्य, कथा, आख्यायिका, चम्प तथा नाटक व प्रकरप आदि विविध रूपकों का उल्लेख किया गया था।
ध्वनिवादी आचार्यों ने काव्य के इस भेद-पभेद की ओर अधिक
ध्यान नहीं दिया तथापि आचार्य अननन्दवर्धन ने प्राचीन आचार्यों के अभिम्त अनेक काव्य-प्रभेदों का उल्लेख किया है - मुक्तक, सन्दा नितक, विशेषक, कलापक कुलक, पर्यायबा, परिकथा, खण्डकथा, सकलकथा, सर्गबन्ध, अभिनय, आख्यायिका तथा कथा।' उन्होंने इन काव्य-भेदों की रचना संस्कृत, प्राकृत व अपगंश में स्वीकार की है। जिससे उनके द्वारा भाषा
को आधार मानकर काव्य -भेदों की ओर संकेत मिलता है।
1. ध्वन्यालोक, 3/7 वृत्ति । 2. ध्वन्यालोक, 3/7 वृत्ति ।