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इत प्रकार आचार्य हेमचन्द्र का काव्य-लक्षण संक्षिप्त होकर भी सारगर्भित है। मम्मट की तुलना में भले ही कोई नवीन बात इसमें नहीं
कही गई है तथापि उसे परिमार्जित व सपतिष्ठित करने का श्रेय आवार्य
हेमचन्द्र को अवश्य है।
आ. रामचन्द्र गुणचन्द्र ने अपने नाट्यदर्पप में यधपि प्रमुखत : नाट्यशास्त्रीय विषयों का ही उल्लेख किया है तथापि इसमें आनुषंगिक रूप से रूपकेतर काव्यशास्त्रीय प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला गया है। आचार्य रामचन्द्रगुपचन्द्र के अनुसार - अभिनेय (अर्थात् दृश्य काव्य)तथा अनभिनय (श्रव्य काव्य) उभयविध काव्य का शब्दार्थ शरीर है, रस पाप है।' विभावानुभावसंचारी - रूप कारपों के द्वारा यह काव्य सङ्दयों के हृदय तक पहुंचता है। अत: कवियों को चाहिए कि वे रस - निवेश के विषय में अधिक सौहार्द्र से तल्लीन रहें, जिससे कि अनायास रस निवेश के साथ-साथ अलंकार भी उसका अंग - उपकारक बन जाय। तभी वह काव्य सहदयों के हृदय में चमत्कार का आधान कर सकता है। इसके उदाहरप रूप में वे "कपोले पत्राली.... इत्यादि उदाहरप प्रस्तुत करते हैं।
1. अर्थ शब्दवपुः काव्यं रतैः प्रापैर्वितर्पति।
हिन्दी नाट्यदर्पप, 3/21 2. हिन्दी नाट्यप, विवरप (वृत्ति) भाग, पृ. 318