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शब्दार्थ को काव्य के रूप में स्वीकार करने की बात कही है।। आचार्य हेमचन्द्र ने काव्य में गुणों की सत्ता अनिवार्य मानी है। काव्य में गुणों की सत्ता का अर्थ है रससम्पत्ति से युक्त होना। इस प्रकार हेमचन्द्र का आग्रह है कि ऐसे शब्दार्थ ही जो दोषरहित तथा रससमन्वित हैं, काव्य की संज्ञा से सुशोभित हो सकते हैं। गुणों की अनिवार्यता को सिद्ध करते हुए स्वयं कहा है कि ऐसा शब्दार्थयुगल जो अलंकारो से मण्डित नहीं है लेकिन गुपबहुल है तो लोग उसका रसास्वादन करेंगे। अर्थात् वह उत्तम काव्य होगा। किन्तु वही शब्दार्थयुगल अलंकारों से मण्डित होते हुए भी जब गुणों से हीन होगा तो कोई उसका रसास्वाद नहीं करेगा अर्थात् वह काव्य न होगा। 2 हेमचन्द्राचार्य ने गुपयुक्त काव्य का उदाहरण, जिसमें अलंकारों का सर्वथा अभाव है, "शून्यं वासगृहं विलोक्य" इत्यादि श्लोक प्रस्तुत किया है तथा अलंकृत होते हुए भी गुणरहित काव्य का उदाहरण * स्तनकर्परपृष्ठस्था" इत्यादि दिया है। 3
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चकारी निरलंकारयोरपि शब्दार्थयो: कवचित्काव्यत्वरव्यापनार्थः । काव्यानु वृत्ति, पृ० 33
अनेन काव्ये गुणानामवश्यंभावमाह स्वदते । काव्यानु, विवेक टीका, पृ. 33
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तथा हि अलंकृतमपि गुणबहव: अलंकृतमपि निर्गुणं न स्वदते ।
3. काव्यानुशासन, पृ, 33-34