________________
36
ग्रन्थ
रचना के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। पुनः काव्यप्रयोजन,
काव्य हेतु, कवि - शिक्षा, काव्य लक्षण तथा उसके भेदों का निरूपण किया
गया है ।
-
द्वितीय तरंग में शब्द स्वरूप, शब्द - शक्तियाँ यथा अभिधा, लचणा तथा व्यञ्जना का सफेद विवेचन करते हुए संयोगादिकों का निरूपण किया गया है।
तृतीय तरंग में सर्वप्रथम अर्थवैचित्र्य का सफेद निरूपण, रस-स्वरूप उसके भेद-प्रभेद, स्थायीभाव, सात्त्विक -भाव, व्यभिचारिभाव आदि का
विवेचन किया गया है। इसी क्रम में शब्द - शक्तिमला तथा अर्थशक्तिमला ध्वनि के स्वरूप तथा भेद - प्रभेदों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
चतुर्थ तरंग में गुणीभूत व्यंग्य काव्य के भेदों का सोदाहरण निरूपप किया गया है तथा अन्त में ध्वनि का द्वितीय स्वरूप प्रस्तुत किया गया है।
पंचम तरंग में, काव्य-दोषों का सामान्य स्वरूप, पद-दोष, वाक्य दोष, उभयदोष, अर्थदोष, वक्ता आदि की विशेषता से दोषों का भी गुण होना तथा रत-दोषादि का सभेद निरूपण किया गया है। अन्त में, रसविरोध परिहार का निरूपप है।
षष्ठ तरंग में, काव्य के तीन गुणों - माधुर्य, ओजस् तथा प्रसाद का विवेचन किया गया है।