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इसके साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थ पर हेमचंद्राचार्य के काव्यानुशासन का भी प्रभाव दृष्टिगत होता है। कवि शिक्षा प्रसंग में " काव्यानुशासन" की स्वोपज्ञ "अलंकारचूणामपि नामक टीका का एक सम्पूर्ण अंश ही प्रायः उद्धत कर लिया गया है। लेकिन इसके साथ ही "अलंकारमहोदधि में कतिपय ऐसी विशिष्टतायें प्राप्त होती है जो उसे काव्यप्रकाश तथा काव्यानुशासन से पृथक् सिद्ध करती हैं। उदाहरणार्थ "काव्यप्रकाश" में 61 अर्थालंकारों तथा "काव्यानुशातन" में मात्र 35 का समावेश किया गया है जबकि "अलंकारमहोदधि में 70 अर्थालंकारों का समावेश किया गया है। इसी प्रकार काव्यप्रकाश में कुल मिलाकर 603 उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं, जबकि अलंकारमहोदधि" में 982 । लेखक ने कतिपय आनुषंगिक बातें भी इसमें जोड़ दी है जो काव्यप्रकाश में अप्राप्य थीं । इससे इस ग्रन्थ का आकार भी बहुत विस्तृत हो गया है।
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प्रस्तुत ग्रन्थ आठ तरंगों में विभक्त है। ग्रन्थ की रचना कारिका तथा वृत्ति में हुई है। कारिकाएं अनुष्टुप छन्द में हैं तथा प्रत्येक अध्याय का अंतिम श्लोक भिन्न छन्द में है। कारिकाएं कु 296 हैं।
प्रथम तरंग में, सर्वप्रथम मंगलाचरण तथा गुरुपरम्परा का अनुसरण करते हुए महामात्य वस्तुपाल तथा तेजपाल का यशोगान किया गया है । तदनन्तर
I.
तुलनीय - अलंकारमहोदधि 1/10
की टीका तथा काव्यानुशासन 1 / 10 की
स्वोपज्ञ अलंकारचूणामपि टीका ।