________________
नष्कामिकी, आक्षेपिकी, प्रासादिकी व आन्तरी नामक 5 भेदों का
सोदाहरप प्रतिपादन, पुरुष तथा स्त्री पात्रों के उत्तम, मध्यम तथा अधम भेदों का कथन, मुख्य नायक का स्वरूप, उसके आठ गुप, नायक के सहायक, नायिका-स्वरूप, उसके मुराधा, मध्या तथा प्रगल्भा - तीन सामान्य भेद तथा प्रोषितपतिका दि आठ प्रसिद्ध भेद तथा स्त्रियों के बीस अलंकारों का विवेचन किया गया है। पुनः नायिकाओं का नायक से सम्बन्ध, नायिकाओं की सहायिका तथा पात्रों के सम्बोधन प्रकारादि का विवेचन है। अन्त में, 12 रूपकों के अतिरिक्त सट्टक, श्रीगदित, दुर्मिलिता, प्रस्थान, रासक, गोष्ठी, हललीसक, शम्पा, प्रेषणक, नाट्य-रासक, काव्य, भाप तथा भापिका नामक । 3 अन्य रूपकों का संक्षिप्त लक्षप किया है।