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वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथजी का जन्म हुवा, भानु राजा पिता और सुव्रता रानी माता थी। अनुमान नौ लाख वर्ष तक संसार में रहे । रतनपुरी के उपवन मे दीक्षा ग्रहण की । माघ कृष्ण १३ को दो वर्ष के आसपास दीक्षा को हुवे ही होगे तो पौष शुक्ल १५ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई। एक लाख वर्ष चरित्र का पालन किया अंत मे कर्म क्षय करके ज्येष्ठ शुक्ल ५ का मोक्ष - पधारे। इन्ही के समय अम्बपुर के राजा शिव के दो रानियो से दो पुत्रपैदा हुए । विजया के गर्भ से सुदर्शन बलदेव और अग्विका. के गर्भ से पुरुषसिह नामक पांचवे वासुदेव हुए। और हरिपुर मे, निशुम्भ प्रति वासुदेव हुआ। पुरुषसिंह ने निशुम्भ को मार के तीन खंड का राज किया।
पंदरहवे तीर्थकर के पश्चात् और सोलहवे तीर्थकर के पहले श्रावस्ती नगरी मे राजा समुद्र विजय को भद्रा रानी के गर्भ से माधवा नामक तीसरे चक्रवर्ती का जन्म हुवा। इनके माक्ष मे जाने के कुछ समय बाद हस्तिनापुर में अश्वसेन राजा सहदेवी रानी के संतकुमार सम्राट् ४ चौथे चक्रवर्ती हुऐ।
पंदरहवे तीर्थकर के मोक्ष मे जाने के पौन पळ्योपम न्यून तीन सागरोपम के पश्चात् ज्येष्ठ कृष्ण १३ को शांतिनाथजी ने गजपुर मे विश्वसेन राजा पिता और अचिरादेवी रानी माता के यहां जन्म लिया । आप पांचवे चक्रवर्ती हुए । ७५ हजार वर्ष गृहस्थ मे रहे, फिर एक वर्ष दान देकर नगरी के उपवन मे ज्येष्ठ कृष्णा ४ को दीक्षा ली । अनुमान १ वर्ष के वाद पौप शुक्ल ६ को केवल