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पृथ्वी के गर्भ से हुआ था । मेरक नामक प्रतिवासुदेव भी पूर्वजात हुवा था । यह वंदन पुर निवासी और समर केशी राजा के पुत्र थे। माता का सुन्दरी नाम था स्वयंभू मेरक नामक प्रतिवासुदेव को युद्ध से संहार करके तीन खण्ड के अधिपति बने । यह तीसरे वासुदेव थे। __तेरहवें तीर्थकर के मोक्ष पधारे ६ सागरोपम व्यतीत हो चुका । बाद मे वैशाख कृष्ण १३ को अयोध्या मे १५ वें तीर्थकर श्री अनत नाथ जी का जन्म हुआ। इन्होने साढ़े बारह लाख वर्ष राज सुख भोगा, फिर संसार के आवागमन से छूटने के लिये वैशाख कृष्ण १४ को उपवन मे दीक्षा अंगीकार की वैिशाख कृष्ण । १४ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई । सिंहसेन पिता और सुयशा माता थी। साढे सात लाख वर्ष तक श्री अनंतनाथजी ने दीक्षा व्रत पाला अन्त मे सम्पूर्ण कर्म क्षय करके चैत्र शुक्ला ४ को मोक्ष पद को प्राप्त हुए। ___ द्वारावती के राजा सोम की रानी सुदर्शना के सुप्रभ नाम का बलदेव इन्ही के समय हुआ था। इसी राजा की दूसरी रानी. सीता के गर्भ से पुरुपोत्तम नामक चौथे वासुदेव का जन्म हुवा, उस समय पृथ्वीपुर का विलास राजा गुणवती रानी से पैदा हुआ मधुक नामक प्रतिवासुदेव राज करता था। पुरुपोत्तम वासुदेव ने मधुक प्रतिवासुदेव को मारकर तीन खण्ड का राज किया । चार सागरोपम का समय जब चौदहवें तीर्थकर को निर्वाण पद प्राप्त किये हो गया तब माघ शुक्ल ३ के दिन रतनपुरी नगरी मे १५