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गर्भ से द्विपृष्ठ पैदा हुआ । दूसरी ओर विजयपुर में श्रीधर राजा राज्य करता था । श्रीमती उसकी एक रानी का नाम था । इसी श्रीमती रानी से तारक नामक बालक पैदा हुआ । जिन्होने आगे चलकर प्रति वासुदेव का पद पाया । इसी तारक को युद्ध मे पराजित कर और मारकर द्विपृष्ठ ने तीन खंड का राज्य पाया और वह दूसरे वासुदेव बने ।
तेरहवे तीर्थकर श्री विमलनाथ जी थे । इनका जन्म बारहव तीर्थकर के निर्वाण हो जाने के तीस सागरोपम के पश्चात् माघ शुक्ल ३ को हुआ था । कम्पिलपुरी इनकी जन्म भूमि थी । इनकी माता वहां की रानी थी और पिता राजा थे । कृतवर्मा पिता का नाम और श्यामादेवी माता का नाम था । पैतालीस लाख वर्ष तक राजपाट का सुख भोगा । फिर भव बंधन से छुटकारा पाने के लिये माघ शुक्ल ४ को अपनी राज धानी ही के उपवन मे जाकर उन्होंने दीक्षा ली । पश्चात् पौष शुक्ल ६ को केवल ज्ञान इन्हें हुआ । पन्द्रह लाख वर्षो तक चारित्र पाला । बाद मे सम्पूर्ण कर्मो का क्षय करके आषाढ कृष्ण ७ को मोक्ष पधारे । जब ये गर्भावस्था में थे, उसमय एक पुरुष अपनी स्त्री को ससुराल से लेकर आ रहा था । मार्ग मे एक स्थान पर वह प्यास से व्याकुल हो पानी पीने के लिये उतरी । इतने में एक व्यन्तरी उस स्त्री की भांति रूप बनाकर उसके पति के पास आकर बोली -- चलो - यहां ठहरने की जगह नहीं है । इस 'ठौर व्यन्त रियो का भयंकर प्रचार है । तब तो यह पुरुष और