________________
जयंप
पश्चात् सिंहपुरी नगरी मै हुयान इनके पिता किसणु जी एव माता श्रीमती विष्णुदेवी थे। १३ लाखे पूर्व-त्तक संसार में रहे । फालगुण कृष्ण ३ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और इक्की न लाखपूर्व चारित्र पाला । फिर अपने सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके मोक्ष पद को प्राप्त किया । इन के समय मे त्रिपृष्ठ नामके वासुदेव हुए जिन के भाई का नाम अचल था। उसी काल मे रत्नपुर मे अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव राज्य करते थे। त्रिपृष्ठने अश्वग्रीव को पराजित कर उसके सारे राज्य को अपने राज्य मे मिला लिया था। इस बात का विशेष उल्लेख श्री वीरचरित्र भगवान महावीर के पूर्व भवो का परिचय मे पाठको क मिलेगा।
ग्यारहवे तीर्थकर के निर्वाण पद प्राप्त कर लेने के चौपन सागरोपम के पश्चात् फाल्गुण कृष्ण १४ के दिन चम्पापुरो नाम की नगरी मे बारहवे तीर्थकर श्री वासुपूज्य जी का जन्म हुआ । इनके वसुदेव पिता और जयदेवी माता थी। और यह उसी के राजा रानी थे। भगवान् वासुपूज्य ने अठारह लाख पूर्व तक संसार मे रह कर फाल्गुण कृष्ण १५ को अपनी ही राजधानी के उपवन मे दोक्षा ग्रहण की । उसके बाद माघ शुक्ल.२ को इन्हे केवल ज्ञान हुवा । इन्हो ने चौपन लाख पूर्व तक चारित्र पाला । आषाढ शुक्ल १४ को मोक्ष पद मे पधारे। इन्हो के समय मे द्वारिका के राजा ब्रह्मदेव की रानी सुभद्रा से विजय नामक बलदेव का जन्म हुआ। उमा इसी राजा की दूसरी रानी थी उसके