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साक्ष्य-अनुशीलन
पद्म पुराण की तिथि के विषय में उक्त पुराण में ही वर्णित है कि महावीर के निर्वाण के १२०३ वर्ष ६ माह बाद पद्ममुनि का चरित्र निबद्ध किया गया।' यदि महावीर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद वि० सं० माना जाए तो इसकी रचना वि० सं० ७३३ अर्थात् ६७७ ई० में हुई।
पद्म पुराण में पद्म (राम) का चरित्र वर्णित है । इसमें रामायण की असम्भव प्रतीत होने वाली घटनाओं की बौद्धिक व्याख्या की गयी है। जैन धर्म में पद्म (राम), लक्ष्मण तथा रावण त्रिषष्टिशलाकापुरुषों में परिगणित हैं । जैन मान्यतानुसार प्रत्येक कल्प में तिरसठ महापुरुष होते हैं : चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र या बलदेव, नौ नारायण या वासुदेव तथा नौ प्रति नारायण या प्रति वासुदेव । इनमें से बलदेव, वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव समकालीन होते हैं। इनमें राम, लक्ष्मण तथा रावण क्रमशः अष्टम बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव हैं । अन्त में इन सभी को जैन दीक्षा में दीक्षित किया गया है । रामायण की अतिमानवीय घटनाओं का विश्लेषण करके राम को जिन-दीक्षा दिलाकर मोक्ष प्राप्ति कराना पद्म पुराण की रचना का प्रमुख उद्देश्य है। इसीलिए श्रेणिक ने प्रचलित रामायण की घटनाओं के विषय में अपने संदेह को गौतम मणधर के सम्मुख पूर्व-पक्ष में रखा, जिसका समाधान उत्तर-पक्ष में गौतम के द्वारा सम्पन्न हुआ तथा राक्षसों, वानरों आदि की समस्याओं का बुद्धिसंगत समाधान सामने आया। पद्म पुराण में राम-कथा को तर्कसंगत बनाने का प्रयत्न किया गया है।
पद्म पुराण के आधार पर राम विषयक अधोलिखित पुराण लिखे गये हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए इन्हें दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम वर्ग में वे पुराण सम्मिलित हैं, जिन्हें स्पष्टतया 'पुराण' नाम दिया गया है और द्वितीय वर्ग में वे ग्रन्थ सम्मिलित हैं, जिनको पुराण न कह कर 'चरित' या 'चरित्र' की संज्ञा प्रदत्त है।
१. पद्म १२३।१८२ २. रमाकान्त शुक्ल पद्म पुराण और रामचरितमानस, नई दिल्ली, १६७४,
पृ० ३३ ३. वही, पृ० ३५
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