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जैनधर्म-मीमांसा
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यदि वे आज किसी देशके लिए निरुपयोगी हैं, तो इसीसे इस्लामको बुरा न समझें । हम इतना ही कहें कि यह नियम आजके लिए उपयोगी नहीं है, इसलिए दूर कर देना चाहिये; परन्तु अपने समयके लिए अच्छा था। इसी उदारतासे हमें वैदिक, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, आदि धर्मोपर विचार करना चाहिये । हम उनकी आलोचना करें; परन्तु पूर्ण निष्पक्षतासे आलोचना करें । उनमेंसे वैज्ञानिक सत्यको खोज लें, बाकीको वर्तमान कालकी दृष्टि से निरुपयोगी कहकर छोड़ दें। परन्तु इससे उस धर्मका निरादर न करें । जिस सम्प्रदायको हमने अपना सम्प्रदाय बना रक्खा है, उसकी आलोचना करते समय हमारे हृदयमें जितनी भक्ति रहती है, वही भक्ति हम दूसरे सम्प्रदायोंकी आलोचना करते समय रक्खें । अपने सम्प्रदायके दोषोंपर तो हम नजर ही न डालें, और दूसरे सम्प्रदायके दोष ही दोष देखें, यह बड़ीसे बड़ी भूल है। इससे हम किसी भी 'धर्मके अनुयायी नहीं कहला सकते-धर्मका लाभ हमें नहीं मिल सकता।
२-जो कार्य सार्वत्रिक और सार्वकालिक दृष्टिसे अधिकतम प्राणियोंके अधिकतम सुखका कारण है, उसे ही धर्म समझें । इसके विरुद्ध कोई भी कार्य क्यों न हो,-भले ही बड़ेसे बड़ा महापुरुष या बड़से बड़ा आगम ग्रंथ उसका समर्थन करता हो; परन्तु उसे हम धार्मिक न समझें । हमारे प्रत्येक कार्यमें यह उद्देश्य जरूर रहे । इस सिद्धान्तको हम अपने जीवनमें उतारनेकी कोशिश करें। . ___३-उपर्युक्त सिद्धान्तके अनुसार सभी सम्प्रदायोंमें कुछ न कुछ हितकर तत्त्व रहते हैं । हम उन्हींको मुख्यता देनेकी कोशिश करें,