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जैनधर्म-मीमांसा
मुझे लक्ष्य करके अरहंत बोल रहे हैं । ८ – पुष्ट अर्थ बाला । ९पूर्वापरविरोध-रहित । १० – महापुरुषोचित । ११ – संदेह - रहित १२- दूषण रहित अर्थवाला । १३ – कठिन विषयको सरल करने। वाला १४ – जहाँ जो शोभाप्रद हो वहाँ वैसा बोलना १५
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षट् द्रव्य नव तत्त्वको पुष्ट करनेवाला । १६ – प्रयोजन - सहित । १९ – मधुर ।
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१८ - पटुता सहित ।
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१७ – पद - रचना - सहित २० – मर्मपीड़क न हो २१ – धर्मार्थ- प्रतिबद्ध । २२ - स्पष्ट अर्थवाला । २३ – परनिंदा - आत्म - प्रशंसा - रहित । २४ - व्याकरणशुद्ध । २५ – आश्चर्यजनक । २६ - जिसे सुनकर यह मालूम हो कि वक्ता सर्वगुणसम्पन्न है । २७ – धैर्ययुक्त । २८ – विलंब - रहित । २९ - भ्रम -रहित । ३० - सब अपनी भाषा में समझें - ऐसा । । ३१ – शिष्ट बुद्धि उत्पन्न करनेवाला । ३२ – पदके अर्थको अनेक रूप विशेष आरोपण करनेवाला । ३३ – साहसिकपनसे कहा गया । ३४ – पुनरुक्तदोषरहित । ३५ – सुननेवालेको खेद न उत्पन्न करने वाला ।
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वर्णनको छोड़कर ये चारों अतिशय ही वास्तवमें अतिशय हैं । पहिले जो अतिशयादि बताए गये हैं उनमें कुछ तो कल्पित हैं और कुछ रूपान्तरित हो गये हैं । गम्भीर और निःपक्ष दृष्टिसे अगर विचार किया जाय तो हमें म० महावीरके जीवनके विषयमें निन लिखित बातें मालूम होंगीं ।
( ४ ) उनका शरीर सुन्दर और सुडौल था ।
( २ ) वे कठोर परिश्रम से थकते नहीं थे और न जोशमें आकर उत्तेजनापूर्वक कोई काम करते थे जिससे बहुत पसीना आ जाय ।
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