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जैनधर्म-मीमांसा
आठ प्रातिहार्य
प्रातिहार्यौके नाम दोनों ही सम्प्रदायोंमें एक सरीखे हैं । उनके नाम हैं ।
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( १ ) अशोक वृक्ष -म० महावरिके शरीरसे बारह गुणा ऊँचा । म० महावीर विहार में प्रायः उपवनोंमें ठहरते थे । उनका आसन अशोक वृक्षके नीचे शिलापट्टपर होता था ।
( २ ) सुरपुष्प - वृष्टि — भक्तोंके द्वारा पुष्प बरसाये जाते थे ।
( ३ ) दिव्यध्वनि -म० महावीरकी वाणीको मालवकोश राग, बीणा, बाँसुरी आदिके स्वरसे देवता ( बाजा बजानेवाले लोग ) पूरते हैं । इससे मालूम होता है कि म० महावीर उपदेशमें कभी कभी अच्छे स्वर में कविता पढ़ा करते थे और भक्त लोग संगीतका मिश्रण करके उसे सुश्राव्य बनाते थे ।
( ४ ) चामर - भक्तोंके द्वारा कभी कभी चमर दुराये जाते थे । (५) आसन — सुन्दर सिंहासन ।
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( ६ ) भामण्डल — इस विषयमें पहिले कहा जा चुका है ।
(७) दुंदुभि – एक तरह के बाजे ।
( ८ ) छत्र — भक्तों के द्वारा की गई छत्ररचना ||
मूलातिशय
ऊपर जो अतिशय आदि बताये गये हैं वह सब मूलातिशयका विस्तार है जो कि कल्पित अकल्पित घटनाओंके सम्मिश्रणसे भक्त लोगोंने किया है । वास्तवमें म० महावीर के मूल अतिशय चार हैं
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