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सम्यग्दर्शनका स्वरूप
शंका — आत्माकी नित्यतामें तथ्य और सत्य दोनों सही, किन्तु
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अगर किसी कारण से किसीको आत्माकी नित्यताका प्रमाण म मिला हो, वह परलोकके विषयमें भी अनिश्चित रहा हो तो क्या जैनधर्मके अनुसार वह सम्यग्दृष्टि अर्थात् जैनी कहला सकता है ?
समाधान- - यह असम्भव नहीं है । जैनत्व कोई दर्शन नहीं, 1 रूद नहीं, किन्तु धर्म है । दुःखसे उठाकर सुखमें धरनेवाला धर्म कहलाता है * । प्रथम अध्यायमें सुखका मार्ग बतलाया गया है। जो उस मार्गपर दृढ विश्वास रखता है, चलनेका विचार रखता है, वह आत्माको नित्य माने या न माने, वह सम्यग्दृष्टि हो सकता है । हाँ, उसमें दुराग्रह न होना चाहिये । क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव इतना उदार 1 परमतसहिष्णु, सर्वधर्मसमभावी या स्याद्वादकी मूर्ति होता है कि वह ऐसे मतभेदोंसे किसीसे घृणा नहीं करता। उसकी जिज्ञासा जाग्रत रहती है।
यदि कोई धर्मावलम्बी परलोक और आत्माको अज्ञेय कोटिमें डालता है - परलोक और आत्मा है कि नहीं इस विषय में मौन ही रखता है— फिर भी जैनधर्म उसका कोई अधिकार नहीं छीनता है । वैज्ञानिक क्षेत्रमें कोई मनुष्य कैसा ही विचार रखता हो परन्तु अगर वह समभावी है, सुखमार्गका विरोधी नहीं है तो वह सम्यग्दृष्टि या जैनी तो कहला ही सकता है किन्तु मोक्ष तक प्राप्त कर सकता हैं । एक जैनाचार्य कहते हैं: ----
चाहे वेताम्बर हो या दिगम्बर हों, बौद्ध हो या अन्य कोई धर्मा
- समन्तभद्र ।
* संसारदुःखतः सत्वान् यो धरत्युत्तमें सुखे ।
१ सेयंबरो य आसंबरो य बुद्धो व तहये अण्णों वा । समभावभाविअप्पा पावइ मुक्खं नं संदेहो ॥