________________
सम्यग्दर्शन के चिह्न
कभी हम उस गुणाभासको गुण समझकर धोखा खा जाते हैं । जिस प्रकार गुणाभास गुण सरीखा मालूम होता है, उसी प्रकार दोषाभास दोष- सरीखा मालूम होता है । सत्य, बन्धन नामका दोष नहीं किन्तु, बन्धनाभास अर्थात् मर्यादा नामका गुण है। इसी प्रकार असत्य, यह स्वतन्त्रता नामका गुण नहीं किन्तु, स्वतन्त्रताभास अर्थात् उच्छृंखलता नामका दोष है । बन्धन किसे कहना और मर्यादा किसे कहना — इस बात के निर्णयके लिये यह जानना चाहिये कि कल्याणकर कौन है और अकल्याणकर कौन है । जो अकल्याणकर हो वह बन्धन है; जो कल्याणकर हो वह मर्यादा है । इसी प्रकार जो अकल्याणकर है वह उच्छृंखलता है; जो कल्याणकर है वह स्वतन्त्रता हैं। मतलब यह कि विश्व कल्याणकी कसौटीपर हमें गुण-दोषकी जाँच करना चाहिये । इस कसौटीपर हमें सत्य, बन्धन नहीं, मर्यादा. मालूम होपा, असत्य, स्वतन्त्रता नहीं, उच्छृंखलता मालूम होमा । 'संवेमी प्राणी संसारके बन्धनोंसे भीत होता है' इसका यह अर्थ नहीं है कि वह मर्यादासे डरता है या उत्तरदायित्वको भूलता है । संवेगी प्राणी पापले और पापके फलसे डरने लगता है इसका फल यह होता है कि वह स्व-पर- अकल्याण नहीं करता. ।
२५५
विषय भोगोंमें अनासक्तिको निर्वेद कहते हैं । शरीरको स्वस्थ रखने के लिये या उसे. टिकाये रखनेके लिये जो सामग्री ग्रहण की जाती है उसे विषय भोग नहीं कहते । खाते समय स्वादपर दृष्टि रखना एक बात है और शरीर स्थिति या स्वास्थ्यपर दृष्टि रखना दूसरी बात है । स्वादके लिये मनुष्य अधिक खाकर अपना अकल्याण करता है और दूसरोंके हड़का खाकर परका अकल्याण करता । यही बात हरएक इन्द्रियके विषय के लिये कहीं जा सकती है ।