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जैनधर्ममीमांसा
जातिके यहाँ पानी न पीयेंगे ! यहाँ तक कि अछूत कहलानेवालोंकी तो बात दूसरी है परन्तु माली काछी आदिके हाथका पानी, जो कि अपने सामने अपने ही बर्तनमें भरवाया गया है, भी न पियेंगे और जो लोग इनके हाथका पानी पियेंग उनके यहाँ ' हम भोजन न करेंगे, उनके हाथका हम पानी न पियेंगे,' इस प्रकार कहनेवाले अहंकारी जीवोंका भी आज टोटा नहीं है । धर्मके नामपर कितना भयंकर द्रोह किया जा सकता है.---शैतान, ईश्वरके वेषमें, लोगोंको कितना ठग सकता है-इस बातके ये नमूने हैं।
(व ) इसी पापका एक रूप चौकाका नियम है। चौकामें चौकीक नीचे विष्टा पड़ी रह मकती है फिर भी चौका ग्वराब नहीं होता परन्तु दूसरी जातिक स्पर्शमात्रसे चौका खराब हो जाता है। मांसभक्षी बिल्ली और विष्टाभक्षी कुत्तेसे चौका ग्वराव नहीं होता किन्तु मनुष्यसे खराब हो जाता है ! विष्टा खानेवाली गायका तो हम दूध पी सकते हैं परन्तु मनुष्यको चौकमें नहीं बिठला सकते । हमारा एक मित्र, जिसे हम बहुत प्यारा समझते हैं, हमारे द्वारपर भूखा बैठा रह सकता है परन्तु हम अपने चौकेमें उसे भोजन नहीं करा सकते क्योंकि वह दूसरी जातिका है या दूसरे सम्प्रदायका है । मनुष्य मनुष्यके साथ कितना अहंकार करता है, उसे कितना अपमानित करता है, उसे पशुओंस भी खराव कैसे समझता है. इस वातके ये उदाहरण हैं। ___ जो लोग मांसभक्षी हैं, मछली खाते हैं, मेंढ़क, केंचुए और झिंगुरोंतकका अचार बनाकर खा डालते हैं, उनके चौकेकी किनारको अगर कोई दूसरी जातिका मनुष्य छु जावे तो उनका भोजन नष्ट हो जाता है । मछली आदिके मुर्दोके ढेरसे चौका खराव नहीं होता, वे