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दर्शनाचारके आठ अङ्ग
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बीमारी आदि विपत्तियोंके हटानेके लिये देवताओंकी पूजा करना मढ़ता है फिर भले ही वह पूजा जिनेन्द्रकी हो या और किसीकी ।
प्रश्न-कष्टके समयमें हर-एक आदमी भगवानका नाम लेता है; गुरुओंका, महात्माओंका, स्मरण करता है । अगर वह समर्थ होता है तो विशेषरूपमें धार्मिक क्रिया-दान पूजा आदि-भी करता है। इस प्रकारकी शुभ प्रवृत्तिको आप मूढ़ता कहो यह बात उचित नहीं मालूम होती।
उत्तर--आपत्तिमें भगवानका नाम लेना या विशेष धार्मिक कृत्य करना बुरा नहीं है क्योंकि उससे आपत्तिको सहन करनेकी शक्ति आती है । आपत्तिमें इस तरहकी भावनाओंसे पुराने अपराधोंका पश्चात्ताप होता है; शत्रुओंकी तरफ़ भी प्रेम उमड़ने लगता है और समताकी भावना पैदा होती है । परन्तु उसे रोगको दूर करनेकी चिकित्सा समझना मृढ़ता है । शुभ कार्य उचित ढङ्गपर और उचित लक्ष्यसे न किया जाय तो अशुभ हो जाता है । स्नानके लिये जलाशयपर जाना उपयोगी है परन्तु पानीके तलपर दोड़ लगानेके लिये वहाँ जाना हानिप्रद है । क्षुधाशान्तिके लिये भोजन करना उचित है; परन्तु प्यासको दूर करनेके लिये भोजन करना मूढ़ता है। इसी प्रकार सहनशक्ति-प्राप्ति के लिये रोग आदि विपत्तिमें देवपूजा आदि उचित है परन्तु उसे चिकित्सा समझना मूढ़ता है। ___ प्रश्न—मूढ़ता तो अधर्म है और अधर्म वही है जो स्वपरदुःखदायी हो । बीमारी आदिको हटानेके लिये अगर कोई देवपूजा आदि करता है तो इससे उसको या दूसरेको क्या दुःख होता है ? उत्तर-रोगादि आपत्तियोंको देवताओंकी कृपा-अकृपापर अवल