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जैनधर्म-मीमांसा
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जाँच करनेकी योग्यता कहाँसे हो सकती है, इसलिये वे किसीको मा-बाप कैसे कह सकेंगे ? इसके अतिरिक्त दुनियाँके सैकड़ों व्यवहार विना परीक्षाके ही करना पड़ते हैं। · उत्तर-परीक्षाके विषयमें तीन बातें विचारणीय होती हैं:
(क) वस्तुका मूल्य, (ख) परीक्षाकी सुसम्भवताकी मात्रा, (ग) परीक्षा न करनेसे लाभ-हानिकी मर्यादा।
(क) सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुओंकी जाँच हम जितनी अधिक करते हैं, उतनी भाजी-तरकारीकी जाँच नहीं करते । अधिक मूल्यवान वस्तुकी अधिक जाँच करना पड़ती है । धर्म अथवा शास्त्र बहुत मूल्यवान है । उनपर हमारा लोक, परलोक और स्थायी कल्याण निर्भर है, इसलिये उसकी जाँच सबसे अधिक और सदा करते रहना चाहिये । अन्य सैकड़ों बातोंकी उतनी परीक्षाः आवश्यक नहीं है।
(ख ) परीक्षा जितनी सुसम्भव हो उतनी ही करना चाहिये । बापकी जाँच करनेमें हमें पड़ौसी आदिके वचनोंपर ही विश्वास रखना पड़ता है और दूसरा कोई सरल उपाय हमारे पास नहीं है, जब कि शास्त्रकी परीक्षाके लिये विवेक-बुद्धिसे काम चल जाता है।
(ग) जिसे हम पिता-रूपमें मानते हैं और जो हमें पुत्र समझता है, सम्भव है, वह पिता न हों तो भी उससे कोई नुकसान नहीं है; इसलिये अधिक जाँचकी आवश्यकता नहीं है। हाँ, जहाँ कोई विशेष झगड़ा उपस्थित होता है वहाँ माता-पिताकी भी जाँच की जाती है । यूरोपमें कई मुकद्दमे ऐसे हुए हैं जिनमें खूनकी जाँच करके यह निर्णय करना पड़ा है कि यह आदमी अमुक व्यक्तिको सन्तान