Book Title: Jain Dharm Mimansa 01
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 323
________________ दर्शनाचारके आठ अङ्ग . ३०९ उसके प्रतीकारके लिये स्वयं कोई ऐसा अच्छा कार्य करना जिससे वह ढँक जाय अर्थात् उसका उपगूहन हो जाय । ( यह सबसे अच्छा और व्यापक मार्ग है | ) ( ख ) सन्मार्ग में स्थित पुरुषोंकी प्रशंसा करना । ( ग ) अगर कोई दम्भी, स्वार्थी, धोखेबाज मनुष्य ऐसा काम करे जिससे सन्मार्गकी निन्दा हो तो उसका भंडाफोड़ कर देना चाहिये और उसके कार्योंका स्पष्ट विरोध करके यह घोषित करना चाहिये कि उसके कार्योंका हमारे समाजसे कोई सम्बन्ध नहीं है । साथ ही उपबृंहण के लिये स्वयं कुछ अच्छा काम करना चाहिये । (घ) अगर किसीसे भूलसे ऐसा काम हो जाय और वह उसका प्रायश्चित्त या प्रतिक्रमण करनेको तैयार हो तो उसके दोषोंको प्रकाशित करने का यत्न न करे, न छुपानेके लिये झूठ बोले । उसकी गलती सुधारे और स्वयं उपबृंहण करे । यह अंग अपनेको कल्याणमार्गमें आगे बढ़ानेवाला, दूसरोंको असन्मार्गसे बचानेवाला तथा सन्मार्गमें बढ़ानेवाला, सन्मार्गका वास्तविक भान करानेवाला और धर्मकी सफलताको प्रकाशित करनेवाला है । स्थितिकरण – अगर कोई मनुष्य कल्याणके मार्गसे गिर रहा हो तो उसे उस मार्ग में स्थिर करना स्थितिकरण है । आपत्ति और प्रलोभनोंसे मनुष्य धर्मसे गिरता है। आपत्ति उसे मदद करना और उसकी सहनशीलताको बढ़ाना, प्रलोभन आनेपर प्रलोभनोंकी निःसारता बतलाना तथा प्रलोभनोंको

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