Book Title: Jain Dharm Mimansa 01
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

View full book text
Previous | Next

Page 326
________________ ३१२ जैनधर्म-मीमांसा दे देना स्थितिकरण है, क्योंकि ऐसा करके हम व्याभिचारके कुमार्ग से उसे रोकते हैं । इस प्रकार और भी उदाहरण दिये जा सकते हैं । हाँ, जो छूट किसीको दी जाय वह ऐसी न हो कि दूसरोंके न्यायोचित अधिकारोंमें बाधा डालती हो । कोई अगर उपवास नहीं करता अथवा कोई अपना पुनर्विवाह करता है तो यह बात ऐसी नहीं है कि जिससे दूसरोंके न्यायोचित अधिकारोंमें बाधा पड़ती हो । स्थितिकरण के लिये मुख्य मुख्य कर्तव्य ये हैं १ – कल्याणमार्गका रहस्य समझकर गिरते हुए मनुष्य के हृदयको दृढ़ बनाना । २ - अपनी दृढ़ताका परिचय देकर उसे दृढ़ बनाना । ३ - उसकी आपत्तिको दूर करना । ४ - जिस कार्य से किसी दूसरेके न्यायोचित अधिकारोंका भंग न होता हो उस कार्यके त्यागके लिये किसीको विवश न करना । ५ – अगर कोई चौथे नियमका भंग करके किसीको विवश कर रहा हो, बहिष्कार आदिसे उसे सता रहा हो, तो पीड़कका विरोध करना और पीड़ितका साथ देना । ६ - संयमीका ( किसी सम्प्रदायका वेषधारी नहीं ) अधिक आदर, सत्कार, प्रेम, सहायता, करना, उसका सच्चा यश फैलाना । यह आदमी संयमी है या असंयमी, अगर इस बातका निर्णय न हो सकता हो तो जितना अंश उसमें संयमका मालूम हो उतने ही अंशकी भक्ति - प्रशंसा करना - असंयम अंशकी नहीं । किसी धनवानका हमें सिर्फ इसी लिये अधिक आदर न करना चाहिये कि वह धनवान है परन्तु इसलिये करना चाहिये कि उसने धन न्यायसे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346