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दर्शनाचार के आठ अङ्ग
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स्वोपकार या परोपकार नहीं होता तब कल्याणके विरोधी होनेसे इन्हें मृढ़ता या अधर्म कहा जाता है ।
यदि ये कार्य धर्म समझकर न किये जायें, अर्थात् स्वास्थ्य सुधार आदिके लिये किये जायें, तो इन्हें मूढ़ता नहीं कहते क्योंकि सी हालत में इनसे सुख प्राप्त होता है । क्योंकि नदी आदिमें स्नान आदि करना नीरोगता देनेवाला है ।
उक्त श्लोक में आचार्य समन्तभद्रने साम्प्रदायिक मूढ़नाओंका नाम लिया है परन्तु लोकमूढ़ताओंका क्षेत्र विशाल है । निर्विचिकित्सताके वर्णनमें जो छुआछूत, चौका आदिके नियमों का उल्लेख किया गया है वे सब भी लोकमूढ़ताके उदाहरण हैं, क्योंकि उनसे भी कोई स्परहित नहीं है ।
रूढ़ियोंकी गुलामी भी लोकमृढ़ता है । ' हमारे बापदादे क्या मूर्ख थे ' सिर्फ इसी विचारसे जो लोग रूढ़ियोंका पालन करते हैं, रूढ़ि - योंसे कुछ लाभ है या नहीं — इसका विचार नहीं करते, अथवा उन्हें हानिप्रद जान करके भी बापदादोंके नामपर उनसे चिपके रहते हैं, वे लोकमूढ़ता उदाहरण उपस्थित करते हैं ।
विवाह के रीति-रिवाजोंकी रूढ़ियाँ, वैवाहिक बन्धनों की रूढ़ियाँ, आदिकी रूढ़ियाँ आदि हजारों रूढ़ियाँ हैं जो निरुपयोगी या हानिकारक हो सकती हैं । उनको अपना कर्तव्य समझना लोकमूढ़ता है ।
कौनसा कार्य लोकमूढ़ता है और कौनसा नहीं — इसका निर्णय करना कठिन है क्योंकि मूढ़ता, क्रियापर नहीं, आशयपर निर्भर है । कोई कार्य विवेक-रहित होकर किया जाय वह प्रकटमें अच्छा मालूम होनेपर भी मूढ़ता हो जाता है । उदाहरणार्थ — तीर्थयात्रा
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