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दर्शनाचारके आठ अङ्ग
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है । इसी इरह ग्लानि भी शुभ होती है । पाप और पापके साधनोंसे ग्लानि करना बुरा नहीं है । इस जगह ग्लानि भी एक धर्म बन जाती है । परन्तु जब इस ग्लानि-धर्ममें अहंकार और मूढ़ताका प्रवेश हो जाता है तब यह बड़े भारी पाप या क्रूरताका रूप धारण कर लेता है। ___ प्रारम्भमें छुआछूतकी भावना पाप तथा रोगसे बचनेके लिये थी। मद्य, मांस आदिके सेवनसे हम बचे रहें—इसके लिये ऐसी चीजोंके स्पर्श करनेका, मद्यपाया आदि लोगोंकी संगतिमे बचे रहनेका, उपदेश था । इसीप्रकार संक्रामक रोग तथा मलिनतासे बचे रहनेके लिये छूआछूतका विचार था । जब तक वह इस लक्ष्यपर रहा तब तक वह जुगुप्साधर्म या शौच धर्म कहलाता रहा । सम्यग्दृष्टिको इसका त्याग अनिवार्य नहीं होता। परंतु इस शौचधर्ममें जब अहंकार, मूढ़ता, द्वेष आदिका सम्मिश्रण हुआ तब यह विषैले दूधकी तरह घातक हो गया । इसलिये निर्विचिकित्सा अंगमें इसका त्याग बतलाया गया है। ___ शौच धर्मके नामपर जो पाप प्रचलित हैं उनके अनेक रूप हैं। उदाहरणार्थ-( क ) अनेक वर्गोका अळूत ठहराया जाना, (ख ) खानपानमें पवित्रताका विचार न करके जातिपाँतिका विचार करना, (ग) अपनेको ऊँच और दूसरोंको नीच साबित करनेके लिये उनके छुए पानी वगैरहका भी त्याग करना, (घ ) चौका वगैरहके मूढ़तापूर्ण नियम, (ङ) आवश्यकतावश इन नियमोंके मूढ़तापूर्ण अपवाद, ( च ) अहंकारपूर्ण शौच नियमोंको न्यायोचित साबित करनेके लिये दूसरोंके मनुष्योचित अधिकारोंका छीनना । यहाँ इनका कुछ खुलासा किया जाता है