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सम्यग्दर्शनके चिह्न
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नाम कोई न लेता। आज जो निंदा करते हैं, कल वे ही प्रशंसा करते हैं । किसकी निंदा-स्तुतिकी पर्वाह किये बिना सत्यकी पूजा करना चाहिये । इसी अश्लोक-भयकी पीड़ाके मारे सैकड़ों लोग * गंगा गये तो गंगादास, यमुना गये तो यमुनादास' की कहावत चरितार्थ करते हैं । वे बेपैंदीके लोटेकी तरह थोड़े थोड़े इशारेमें सब जगह नाचते हैं । वे चार दिनकी वाहवाहीमें भूलकर सच्चे और स्थायी यशको खोते हैं, अपनी अन्तरात्माका दिन-रात खून करते हैं और कल्याण-मार्गसे वञ्चित रहते हैं। परन्तु सम्यग्दृष्टि ऐसी वाहवाहीके नाशका भय नहीं करता। __ आकस्मिकभय-कर्तव्य-मार्गमें आकस्मिक घटनाओंका भय आकस्मिकभय या अकस्मात्भय कहलाता है । बिना किसी पर्याप्त कारणके बहानेबाजी करना अकस्मात्-भय है। कर्तव्य सामने है, परन्तु वह सोचता है कि 'अगर घरसे बाहर निकलनेपर सिरपर बिजली गिर पड़ी तो ? अगर रेलगाड़ी टकरा गई तो ? अगर मकान गिर पड़ा और मैं दब गया तो ? ' इस तरह बात-बातमें ' तो तो' करके वह कर्तव्यसे विमुख होता है । अगर कोई ऐसे आकस्मिक भयोंसे डर जाय तो कल्याण-पथपर कभी न चल सके । महावीर जब घरसे बाहर निकले तो उन्हें असाधारण बाधाएँ सहना पड़ी। रात्रिमें वे निर्जन अंधकारमें रहते थे, वहाँ उन्हें सर्प काट खाता तो ? जंगलमें कोई हिंस्र जन्तु आक्रमण करता तो ? या और कोई प्राकृतिक विपत्ति आई होती तो ?--ऐसे विचार अगर महावीरके हृदयमें उठे होते तो क्या वे महात्मा महावीर बन पाते ? क्या कोई भी मनुष्य ऐसे भयोंसे अपना या जगत्का कल्याण कर सकता है ! सम्यग्दृष्टि ऐसे भयसे कर्तव्यको नहीं छोड़ता ।