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जैनधर्म-मीमांसा
Amarriannn.
' इसका यह अर्थ नहीं है कि वह अनावश्यक आपत्तियोंको व्यर्थ निमन्त्रण देता है, या वह मौतके कारणोंको ढूँढ़ता ही रहता है, या वह शरीर-रक्षाके लिये यत्नपूर्वक काम नहीं करता है, या जो मकान आज-कलमें गिरने वाला है उसी मकानमें जाकर वह सोता है। वह इन सब घटनाओंमें यत्नपूर्वक काम करता है । परन्तु जब ये घटनाएँ कर्तव्य-मार्गमें बाधा डालने लगती हैं तब वह इनकी पर्वाह नहीं करता । वह निर्भय होकर कल्याण-मार्गमें आगे बढ़ता है । हर-एक उद्देश्यकी सिद्धिके लिये निर्भयता आवश्यक है । हर-एक धर्ममें निर्भयताका उच्च स्थान है।
यहाँ भयके सात भेद किये गये ह । भयके भेद इससे कम भी किये जा सकते हैं और बढ़ाये भी जा सकते हैं । अथवा उनके नाम भी बदले जा सकते हैं । कहनेका मतलब यह है कि सम्यग्दृष्टिको कल्याणमार्गमें निर्भय होना चाहिये । उसकी निर्भयताको स्पष्ट समझानेके लिये ये सात भेद किये गये हैं । आवश्यकतावश न्यूनाधिक भेद करनेमें भी कुछ बाधा नहीं है।
प्रश्न-सम्यग्दर्शनके चिह्नोंमें संवेगको स्थान दिया गया है। संवेग भी तो एक प्रकारका भय है । एक जगह भयको गुण बतलाना, दूसरी जगह भयको दुर्गुण बतलाना, इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर-किसी भी वस्तुका अच्छा या बुरापन, उसके नामपर नहीं, कामपर निर्भर है । संवेगमें जो भय है वह कायरताका परिणाम नहीं, किन्तु त्यागका परिणाम है। संवेगका भय कल्याणका साधक है, जब कि यह भय कल्याणका बाधक है । इसलिये संवेगमें भयको गुण बतलाया है, और यहाँ दुर्गुण बतलाया है । संवेगमें जो